कविता की रचना धरती पर की गई

कविता की रचना धरती पर की गई

नभ से जब मेघ गरजते
खिल उठ मैं आती हूं!
जब गिरती जल की बूंदें
तब मैं प्यास बुझाती हूँ, !


जो भी आये शरणं मेरे
सबको निभाती आई हूं
प्यासी जब रहती हूं मैं
मेघो पर आस लगाती हूं!


लेटी हूँ गगन के नीचे
सबका भार उठाती हूं!
पोषण सबका करती आई
जल मेघों से पातीं हूं!


मुझमें है आस सबकी
मैं मेघों पर रखती हूं
जब गिरती जल की बूंदें
तब मैं प्यास बुझाती हूं!


पर्वत विशाल क्यों न हो
ऐ सब गोद में हैं मेरे!
भार मैं सबका उठाती
बहती नदियाँ आंचल से मेरे!


नभ से जब मेघ गरजते
खिल उठ मै आती हूं,
जब गिरती जल की बूंदें
तब मैं प्यास बुझाती हूं!

कविता की रचना धरती पर की गई,
धरती हमारी जननी है, हम सब इसके
आंचल में रहते हैं जहाँ तक बड़े-बड़े पर्वत
नदियाँ, पेड़ पौधे इमारतें, ये सब धरती की
गोद में है और हम सब को धरती ने अपनी
गोद में लिया है, जिस तरह हम धरती
पर निर्भर है, धरती भी किसी और पर निर्भर है ,वो है, बादल बारिश जब आकाश से बादल
गरजते है अपनी गोद से जल की बूंदें धरती पर बरसाते है तब धरती हरी भरी होती है धरती पर जो भी प्राणी है वो सब धरती के हरी भरी होने का आंनद लेते हैं धरती ने अपने अंचल में सबको जगह दिया आज हम खाने के लिए जो भी अनाज, फल फूल इतियादि
पैदा करते हैं ये सब धरती की देन है,
जितने भी जींव प्राणी है इन सबका भोजन धरती से ही प्राप्त होता हैं ,सुंदर लेख पर हर
सप्ताह आपको एक कविता प्रस्तुत कि जाती
है कृपया आवश्य पढ़े ! धन्यवाद लेखक


मनवर सिंह