ये कविता कोरोना पर आधारित है
बुझे दीपक जो धरती से
छोड़ गए पहचान अपनी!
जगमगाते थे कल तक जो
जीवन त्याग गए रेल पटरीयों
में अपने!
जा रहे थे पैदल अपने गाँव
कुछ थे साईकिल रिक्सो में!
थक गए पैदल चलते चलते
लेट गए रेल की पटरीयो में!
सफर था गाँव का लम्बा
थक गऐ थे चलते राहों में
कुछ पल आराम करने लेटे
वे कट गए रेल की पटरी में!
जो उग रहे थे! बीज धरती पर
कुछ खिल रहे ,थे फूल बनकर!
एक अदभुत ऐसा तुफान आया!
जिसने हलचल मचाया धरती पर!
इंतजार थी घर में जिनकी
घर पहुंचेगे कब लल्ला उनके
कुदरत ने ऐसा कहर फैलाया
न आया लल्ला न रहे उनके!
भगदड़ मचा था गलियों में
सैलाब फैला था ,सडको पर
जैसे कि काया पलट रही हो
ऐसा दृश्य भी देखा धरती पर !
किसे थी चिंता नौकरी की
चिंता थी जान बचाने की
उतर आऐ लोग सड़कों में
भगदड़ गाँव जाने वालो की
कितने दीपक और बुझेगे
कब तक तूफान आतें रहेगे
कितने अपनों से बिछड़ेंगे
अभी और कितने नीर बाहेंगे!
बुझे दीपक जो धरती से
छोड़ गए,पहचान अपनी
जगमगाते थे कल तक जो
त्यागे जीवन रेल पटरीयो
में अपने!
सन, 2020 में जब देश में कोरोना आया,उस वक़्त सरकार ने सारे देश में लॉकडाउन लगाकर यातायात की सुविधाओं को बंद कर दिया देश में चारों ओर हाहाकार मचा था, लोग दहशत में आकर शहरों को छोड़ कर कही सौ किमी पैदल गाँव की ओर जाने लगे उस वक़्त देश में ऐसा दृश्य देखा था जो हमने आज तक अपने जीवन काल में कभी नहीं देखा पैदल चलने वाले लोग रास्तो में अनेक प्रकार की कठिनाईयां झेल रहे थे कुछ लोग चलते चलते, जब थक गए तो रेल की पटरी मे कुछ पल के लिए आराम करने लेट गए , कुछ समय बाद एक माल गाड़ी उसी लाईन से आती है जिस लाईन में पैदल जाने वाले मुसाफिर आराम करने लेटे हुए थे वे सब गहरी नी़द में थे कुदरत का उनपर ऐसा कहर टूटा की वे सब माल गाड़ी के नीचे कट कर मर गऐ उनके झोलों में जो रास्ते के लिऐ रोटी रखी थी वो सब उसी रेल पटरी पर बिखर गई उनके घर परिवार वाले उनकी इंतजार में बैठे, हमारे बच्चे कब पहुचेंगे लेकिन वे सब भगवान को प्यारे हो गऐ ये एक सच्ची घटना है, इस घटित घटना पर कविता आधारित है?
मनवर सिंह द्बारा लिखी गई सुंदर लेख ब्लॉग पर पढिए!