कोयल की वाणी पर कविता की रचना

डाल डाल पर उड़ती हैं
हरे पत्तों में छूप जाती है |
कू कू करके दूर दूर तक
डालियों में उड़ जाती हैं |
डाल डाल पर उड़ती हैं|


रगं की काली ये, पंक्षी हैं
कद की माटी ये पंक्षी है|
जब बोलती मधुर सूर में
ये रहती तब अपने धून में |


वसंत ऋतु आते ये पंक्षी
डेरा छोड़कर चल जाती हैं |
अपनी मीठी बोली से ये
संदेश सुनाने तब लगतीं है |


वसन्तं ऋतु आते ही ये
डेरा अपना छोड़ जाती हैं |
जैसा बदलता मौसम ये
मुल्क अपना लौट आती हैं |


डाल डाल पर उड़ती हैं
हरे पत्तों में छुप जाती है |
कू कू करके दूर दूर तक
डालियो में उड़ जाती हैं |

कोयल की वाणी पर कविता की रचना |

पंक्षियों की भी अलग अलग जाति होती है जिनमें एक जाति की पंक्षी कोयल भी है कोयल एक ऐसी पंक्षी है, जिसकी वाणी में बहुत मिठास है, ये पंक्षी जब बोलतीं है तब इनके स्वर बहुत ही मिठे लगतें है इनकी विशेषता यह है,कि ये मौसम के अनुरूप अपना मुल्क को छोड़कर अन्य मुल्क में चले आते हैं और जब ये पंक्षी दुसरे मुल्क में आती है तब ये संदेश देतीं हैं कि वसंत ऋतु शुरू हो गया और हम अपने मुल्क को छोड़कर आप के मुल्क में आ गए |और जैसे ही मौसम में परिवर्तन होने लगता है फिर ये पंक्षियां अपने मुल्क को लौट जाती है | ये पंक्षीयां न जादा बड़ी होती है न ही जादा छोटी ये काले रंग की होता है, ये अक्सर ऐसे वृक्षों के पत्तों में बैठती है जिन वृक्षों का आकार फैला होता है, तब ये दिखाई नहीं देती ये एक डाल से दुसरी डाल पर दूर दूर तक उडती रहती है, इनका अपना एक ठिकाना नहीं होता जब ये पंक्षी बोलतीं हैं इनके कूक से निकले हुए स्वर बहुत ही मधुरं और सुंदर लगते हैं, जिन्हें सुनने में बहुत आंनद आता है