इस कविता की रचना कोरोना वायरस
घटित घटनाओं पर की गई है
संभलो वक़्त है बाकी
वक़्त यू ही बीत न जाए!
कितना धरती को खोदोगे
कितना धूआं फैलाना बाकी॥
संभलो वक्त है बाकी॥
कितनो का राख बन चुका
कितने अभी बनेगे बाकी॥
जब गंगा जमुना भी पूछेगी
अब प्रदूषित करना हमें है बाकी!
हर दिन उड़ रहा है ,धुआँ
हर दिन खुद रही है धरती॥
संभाला नहीं अभी वक्त पर
न उडेगा धुआँ न रहेगी धरती ॥
संभलो, वक़्त है बाकी!
फैला धरती से अम्बर तक
शहर शहर के गलियारों से॥
उड़ रहा धुआँ मरने वालो का
कोरोना जैसी बीमारी से॥
वक्त है, संभलो अभी भी
कोरोना जैसी बीमारी से॥
कल वक़्त बीत न जाये
दुनिया की गलीयारो से॥
समय फिर नहीं मिलेगा
सूर्य अस्त हो जायेगा॥
भौरकाल दिखे न दिखे
सनांटा धरती में छायेगा!
संभलो वक़्त है बाकी॥
कविता में उस समय का वर्णन किया गया जिस समय विश्वभर में कोरोना ने अपना
वायरस फैलाया उस वक़्त सभी देशों में प्रलय जैसी स्थित बनी हुई थी ,सभी देशों के डाक्टर, वैज्ञानिकों ने बहुत सारे रिसर्च करने के उपरांत
भी कोरोना की दवा बनाने में असफल रहे दिन प्रति दिन कोरोना का कहर बढता गया किन्तु दवा बनाने में कोई भी देश सक्षम नहीं हो पाये
जिधर भी देखा कोरोना से मरने वालों की
संख्या बढ़ती जा रही थी, शमशान घाट भी
अर्थीयो को जलाने के लिए कम पड़ गए थे,
शमशान घाटों में चारों ओर धुआँ ही धुआं उड़ रहा था देश में कोरोना से मरने वालो का धुआं
आसमान में काले बादल बनकर मंडरा रहे थे कब्रिस्तानों में भी अर्थीयो को दफनाने के लिए भी जगह कम पड़ रही थी, नदियाँ भी प्रदूषित हो रही थी चारों तरफ दहशत फैला था देश की सरकार लगातार लोगों को अपने आप में सुरक्षित रखने व घर के अन्दर रहने को कह रही थी, देश के डाक्टर , वैज्ञानिको ने लगातार दवा बनाने पर अपना प्रयास जारी रखा और एक साल बाद कोरोना वैक्सीन बनाने में उन्हें सफलता प्राप्त हुई इन सारे घटनाओं को देखते हुए मैंने इस कविता की रचना कोरोना वायरस भाग –2 में की है! इससे पहले भी मैंने भाग 1 में कोरोना पर एक कविता प्रस्तुत की आप सभी सज्जन कोरोना वायरस की रचना घटित घटनाओ पर
मनवर सिंह द्बारा लिखी गई सुंदर लेख ब्लॉग पर पढिए!