टिमूरु वृक्ष आस्था से संबंधित है, इस वृक्ष की विशेषता यह है की भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद के प्राणों की रक्षा करने के लिए नरसिंह देवता का अवतार लिया तब विष्णु भगवान ने हिरण्यकश्यप का वध किया था
विस्तार विवरण
एक समय पर दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने जब ब्रह्मादेव की घोर तपस्या की ब्रह्म देव ने प्रसन्न होकर उन्हें वरदान मांगने को कहा, हिरण्यकश्यप ने अमर होने का वरदान मांगा किन्तु ब्रह्म देव ने अमर होने का वरदान देने से इंकार कर दिया इसके अतिरिक्त हिरण्यकश्यप से कोई और वरदान मांगने को कहा, फिर हिरण्यकश्यप ने एक ऐसा वरदान मांगा जिसे भगवान ब्रह्मदेव को देना पड़ा इस वरदान को देने से स्वर्गलोक में सभी देवताओ में हाहाकार मच गया,वही दूसरी ओर हिरण्यकश्यप और सारे असुर जाति में खुशी की लहर थी, फिर नारद जी ने एक रचना रचि असूर कुल में जन्म लिया, हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद को भगवान विष्णु का भक्त बना दिया ,प्रहलाद विष्णु के नाम को जपने लगा, कही बार हिरण्यकश्यप के समझाने पर भी प्रहलाद ने हरि ,विष्णु बोलना नहीं छोड़ा जिसे क्रोधित होकर हिरण्यकश्यप ने पुत्र प्रहलाद को कठोर से कठोर डंड देने का निर्णय लिया, जैसे ही हिरण्यकश्यप प्रहलाद को मारने के लिए तैयार हुआ वैसे ही प्रहलाद प्रभु को स्मरण करने लगा फिर हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद से कहा मैं ही शक्ति मान हूं मैं ही ईश्वर हूं, मुझे ब्रह्म से वरदान मिला है ।
मुझे कोई मार नहीं सकता फिर भक्त प्रहलाद बोला स्वयं भगवान विष्णु , फिर हिरण्यकश्यप और क्रोधित हो गया और अपनी तलवार निकाली बोला कहा है तेरा विष्णु जब प्रहलाद बोला वो तो कण और कंठ में है,फिर हिरण्यकश्यप ने तलवार की तेज धार से सामने एक खम्भ को जैसे ही तोडा़ भगवान विष्णु नरसिंह का अवतार लेकर प्रकट हुए उनका रूप ना नर ना नारायण का था फिर उन्होंने हिरण्यकश्यप के वरदान के अनुसार ही वध किया, तब से इस वृक्ष को नरसिंह देवता टिमूर वृक्ष के नाम से जाना जाता हैं।
टिमूर के वृक्ष पहाड़ो में पाये जाते हैं
ये वृक्ष पहाड़ो के ठंडे इलाकों में पाये जाते हैं, इनकी संख्या बहुत कम है, पहले तो ये वृक्ष ढूंढने पर मिल जातें थे , आज के समय में ये वृक्ष ढूंढने पर भी आसानी से नहीं मिलतें हैं।
टिमूर वृक्ष का आस्था में उपयोग-
इस वृक्ष मे दान्त के आकार के नुकीले कांटे होतें हैं टिमूर की लाठी मे एक पीले कपड़े की झोली
बांधकर झोली के अंदर थोड़ा सा चावल और कुछ पैसे डाल देते हैं, फिर झोली को नरसिंह देवता के मंदिर में रख देते हैं, इससे देवता अपने भक्तों की रक्षा करता है,आप ने कभी देखा होगा साधुओं के हाथों में भी यही टिमूर की लाठी रहती है ,यह रक्षा का प्रतीक है। उत्तराखंड के जिस घर में नरसिंह देवता या भैरवनाथ का स्थान होता है, वहां टिमूर की लाठी और पीले कपड़े की झोली अवश्य मिलेगी इससे प्रतीत होता है घर में भगवान नरसिंह देवता या भैरवनाथ का स्थान है।
टिमूर से दान्त मंजन
टिमूरु की टहनी दन्त मंजन में बहुत उपयोगी है, इससे दान्त मंजन करने से दान्तो का पीला पन्न साफ हो जाता हैं।
टिमूर से दान्तो के किड़े नष्ट होते हैं
जिन दान्तो में किड़ा लगा हो या किड़ा ने दान्तो में छेद किया हो उन छेदों में टिमूर पाउडर डालने से या टिमूर की टहनी से दान्त साफ करने से दान्तो पर लगा किड़ा नष्ट हो जाता हैं, और किड़ा नहीं लगता हैं इसलिए पहाडों में लोग अक्सर टिमूर की टहनी का इस्तेमाल करते हैं,टिमूर दान्तो की सफाई और किडो़ से सुरक्षा के लिए बहुत लाभदायक है।
टिमूर की टहनी से दान्त पाउडर
टिमूर की टहनी को लाकर धूप में सुखाने के पश्चात् टहनीयो से पाउडर बनाया जाता है, ,इस पाउडर में हल्का सा नमक और हल्दी मिला लेते है , फिर उंगली से दान्तो की जड़ को साफ किया जाता है, इसमें किसी भी प्रकार का कैमिकल का उपयोग नहीं किया जाता ,उतराखंड में यह वृक्ष टिमूरु के नाम से विख्यात है।