कविता की रचना समय का सफर पर की गई

गैस सिलेंडर से अच्छा था
वन वन कि वो लकड़ी |
माटी के चूल्हे में जो
धु धु करके जलती थी |

घर घर में माटी का चूल्हा
मुफ्त में वनों की लकड़ी|
जलती थी धु धु करके
वन वन की वो लकड़ी|

स्वादिष्ट भोजन बनता था
लोहा कढ़ाई पीतल पतेलो में |
आज जमाना बदल गया
बनता एलुमिनियम पतेलो में|

स्वादिष्ट भोजन आज कहां
जो वन की लकड़ीयो में था |
आज जमाना गैस सिलेंडर का
दौड़ रहीं जनता पीछे पीछे जहां|

इन्हीं वन की लकड़ीयो से
राख कोयला बनता था |
राख से बर्तन साफ करते थे
कोयला से दंत मंजन होता था |

सोचो कभी विचार करो
गुजरे समय को याद करो |
वो लकड़ी माटी का चूल्हा
कभी उन वर्तनो को याद करो |

कविता की रचना समय का सफर पर की गई|


जैसे जैसे समय में परिवर्तन आता गया समय के अनुरूप वस्तुऐं भी बदलतीं गई
एक समय था जब घर घर में लोगों का मिट्टी का चूल्हा होता था और जंगलों से लकड़ी लेकर आते थे और खाना इन्ही लकड़ीयो में
मिट्टी के वर्तनो में बनाया करते थे धीरे धीरे समय में परिवर्तन होता गया फिर लोग
पीतल के पतेलो , कांस का भडडू व लोहे के बर्तन में बनाने लगे,उस समय खाने का स्वाद
कुछ और ही था आज के समय में लोग एलुमिनियम के पतेलो और गैस सिलेंडर पर आ गए जितना सुविधाओं से जुड़ते जा रहे हैं उतना ही लोग शरीर से खोखला होतें जा रहे अनेक प्रकार की बीमारी से जूझ रहे यही कारण है कि लोग पुराने रीतिरिवाजों को छोड़कर आज नऐ नऐ रीति रिवाज अपना रहे हैं, क्यों की समय का आभाव है, भगदड़ की जिंदगी वो पहले जैसा पौष्टिक आहार नहीं आज के समय में हवा पानी भी शुद्ध नहीं, तो भोजन कहा शुद्ध मिलेगा पहले लोग अपना कुटिल उधोग करते थे जैसे खेतों में काम करना जानवर पालना इसके अतिरिक्त छोटे बड़े काम करना आज के समय में लोगों का
मुख्य पेशा है नौकरी करना जिसके चलते लोगों के पास समय की कमी का मुख्य कारण बना|

Leave a comment